याद है क्या तुम्हें तुम्हारी वो नीली साड़ी | Saree Poetry – Mahi Kumar

याद है क्या तुम्हें

तुम्हारी वो नीली साड़ी,
उस पर तुम्हारी मुस्कान
समझ नहीं आता के
पहले तारीफ़ किसकी करूं…
उस साड़ी में तुम लग रहीं थी
एक नील पत्थर
वही नील पत्थर,
जो अब तुम से ज्यादा
मेरे सपनों में आता है…
वही नील पत्थर जो केवल
मेरे सपनों की दुनिया तक सीमित है,
आँखें खुलने पर सपनों की तरह
जो पल में ओझल हो जाता है…
जिसकी चमक आंखे खुलने नहीं देती
और ख़ूबसूरती आँखें फेरने नहीं देती
जब नीली साड़ी में देखता हूँ तुम्हे
वही नायाब नील पत्थर याद आता है..




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