Beautiful poetry about greatness of Saree – Chandini Meda

చీర :
ఆరు గజాలు ఉండే అందమైన వస్త్రం..

ఆడవారు ఆనందంగా తొడిగే అలంకరణం..

చీర :

వన్నెలు కప్పుతూ
సొగసును దాచి పెడుతూ
కనీ కనిపించని అందాలతో
ఇతరులను ఆకర్షిస్తు
ఇట్టే ఆకట్టుకునే
మా ఆడువారు ఒంటి మీద ఆభరణం..

జాతి మత కుల బేధం ఇవేమీ అడ్డు చెప్పనిది .
ఒక్కో సందర్భానికి ఒక్కో రకం అలా పలు రకాలు.

నిలువెత్తు అందం చూడాలి అన్నా చీరలోనే
అంతటి అందం చూపించాలన్నా చీరకే సాధ్యం

చాందిని_మెడా
17-06-2022




साड़ी क्यों नहीं पहनती तुम?

साड़ी क्यों नहीं पहनती तुम?
पहना करो, अच्छी लगती हो….
सूखे पत्तों के बीच,
गुलाब की पंखुड़ी लगती हो..
शायद तुम्हें पता नहीं
नजरें बहुत सी तुम पर रहती हैं..
लेकिन उत्सवों में तुम,
आंखों का नूर बन उभरती हो..
देखने को नज़ारे और भी हैं
दिल बहलाने के लिए फसाने और भी हैं..
मगर तुम्हारे शबाब़ जैसा
आफ़रीन पूरे कयानात में नहीं…
साड़ी के पल्लू को संभालती
मेरे ख्वाबों की बेचैनी लगती हो..
साड़ी क्यों नहीं पहनती तुम?
पहना करो, अच्छी लगती हो….




याद है क्या तुम्हें तुम्हारी वो नीली साड़ी | Saree Poetry – Mahi Kumar

याद है क्या तुम्हें

तुम्हारी वो नीली साड़ी,
उस पर तुम्हारी मुस्कान
समझ नहीं आता के
पहले तारीफ़ किसकी करूं…
उस साड़ी में तुम लग रहीं थी
एक नील पत्थर
वही नील पत्थर,
जो अब तुम से ज्यादा
मेरे सपनों में आता है…
वही नील पत्थर जो केवल
मेरे सपनों की दुनिया तक सीमित है,
आँखें खुलने पर सपनों की तरह
जो पल में ओझल हो जाता है…
जिसकी चमक आंखे खुलने नहीं देती
और ख़ूबसूरती आँखें फेरने नहीं देती
जब नीली साड़ी में देखता हूँ तुम्हे
वही नायाब नील पत्थर याद आता है..